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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

मैं, श्रीमती जी और शाश्वत युद्ध  


मैं , श्रीमती जी और शाश्वत युद्ध

आज सुबह नाश्ता करने हम लोग डाइनिंग टेबल पर बैठे थे । "कहानी मंच" में मैं अपनी आज की पोस्ट " सास, जेठानी और छोटी बहू " जो हास्य-व्यंग्य की रचना थी और बॉस तथा सीनियर्स के सास और जेठानी की तरह से व्यवहार करने को लेकर थी , पर आयी खूबसूरत टिप्पणियों पर मन ही मन मुस्कुरा रहा था कि श्रीमती जी ने देख लिया । मुझे मुस्कुराते हुए देखकर उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया । तुरंत तमक कर बोलीं 

"मुझे देखकर तो आज तक कभी आपके लबों पर मुस्कुराहट  की एक लकीर तक नहीं खिंची । आज किसके खयालों में खोये हुए हो ? और क्या सोच कर मगन हो रहे हो" ? 

मैं उसे कैसे बताता कि " कहानी मंच " तो मगन होने का खजाना है और सारा जग उसका दीवाना है । लेकिन अगर कुछ नहीं बताया तो उसका शक यकीन में बदल जायेगा । इसलिए बोला  "आपके खिलते हुये चेहरे को देखकर भला कौन से ऐसे होंठ हैं जो खिलेंगे नहीं ? मेरी तो हंसी तुमसे ही शुरू होती है और तुम पर ही खतम  । आज तो तुम कमाल लग रही हो । वाह, क्या कहने तुम्हारी खुबसूरती के" । हमने थोड़ा सा मस्का लगाया ।

मस्के का असर शर्तिया होता है । यहां भी हुआ ।
"ठीक है ठीक है , ज्यादा मस्का मत लगाओ । मुझे तो ये बताओ कि अभी आपके ख्वाबों में कौन सी कमीनी आ रही थी " ?

मैंने मन ही मन सोचा कि मेरे ख्वाबों में तो केवल आप ही आती हैं देवी । और किसी के बारे में तो मैं सोचने की हिम्मत भी नहीं कर सकता हूं । लेकिन मैं यह सोचकर कुछ नहीं बोला कि अगर मैं यह कह दूंगा कि आप ही आती हैं तो फिर वे यह कह कर सारा कबाड़ा कर देंगी कि आपने मुझे कमीनी कहा । और फिर घर में बहुत बड़ा वाला महाभारत शुरू हो जायेगा । 

इसलिए मैंने टालने के इरादे से कहा कि "तुम औरतें तो यही सोचती हो कि हमारे ख्वाबों में अपनी पत्नी के सिवाय दुनिया की सारी औरतें आती रहतीं हैं और हमारे मन को गुदगुदाती रहतीं हैं । बोलो , है ना यही बात" ?

वो बोली " हां, सही बात है । सारे मर्द एक जैसे ही होते हैं। अपनी बीवी के बजाय दुनिया भर की औरतों के ख्वाब संजोते हैं । आप ही बताइये कि आज तक किस पुरुष के  ख्वाबों में उसकी पत्नी आयी है भला " ?

और न चाहते हुए भी लड़ाई शुरू हो गई।

ये हमारा रोज का कार्यक्रम था । छोटी छोटी बातों पर हम दोनों इसी तरह से लड़ते झगड़ते रहते थे ।  बिना लड़े चैन नहीं आता है औरतों को । और वो कहती भी हैं कि जब वे प्यार भी हमसे ही करती हैं तो लड़ाई करने क्या पड़ोसी के घर जायें ? रोज महाभारत होता है हमारे घर ।  हमारे पुत्र और पुत्री मध्यस्थता करके हम दोनों में संधि करवाते थे । न जाने कितनी संधि हो चुकी हैं अब तक । और न जाने कितनी होते होते रह गईं । बहुत सारी संधियां तो उनकी यादों की गर्त में फना हो चुकी हैं या वे भूलने का नाटक करती हैं,  कुछ पता नहीं है ।‌ अगर उनका संग्रह किया जाये तो कई किताबें छप सकती हैं ।

हमारा पुत्र तो आई आई टी करने दिल्ली चला गया और पुत्री यहीं पर लाॅ की पढाई कर रही है । वह हमारी लड़ाई में वकील या यूं कहें कि बर्बरीक की भूमिका निभाती है । यदि श्रीमती जी कमजोर पड़ती हैं तो वह उनका पक्ष लेती है और जब मैं कमजोर होता हूँ तो कभी कभी मेरा भी । पर अक्सर वह उनका ही पक्ष ज्यादा लेती है । शायद जेंडर इश्यु के कारण । पर मेरे आज तक यह समझ में नहीं आया कि सास - बहू , ननद- भौजाई , जेठानी - देवरानी ये सब भी तो एक ही जेंडर की हैं पर उस समय ये जेंडर इश्यु कहां चला जाता है ?

आजकल घर में सास, जेठानी , देवरानी और ननद तो होती ही नहीं हैं इसलिए श्रीमती जी लड़ाई किससे करें ? अपनी सारी भड़ास किस पर निकालें ?  इसलिए मेरी पत्नी कहती भी है कि लड़ाई करने पड़ोसी से थोड़ी जाऊंगी , तुमसे ही करूंगी । इसलिए उनका सारा नजला  बिना जुकाम हुए भी मुझ गरीब पर ही गिरता है । 

लेकिन इस रोज रोज की लड़ाई में भी एक अजीब सा आनंद आता है । उसकी आंखों से निकलने वाली चिंगारियां बड़ी शानदार होती हैं । गाल और लाल हो जाते हैं । गुस्से में वह और भी हसीन लगती है । इसलिए मैं उसे छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ता और वह लड़ने का । इस तरह यह लड़ाई चिर लड़ाई में तब्दील हो चुकी है । अब तो पड़ोसी भी इसके आदी हो चुके हैं । वे शुरू में तो बीच बचाव के लिए आ जाते थे मगर अब तो कहते हैं कि कॉमेडी शो चल रहा है

मेरी पुत्री इस महाभारत में अपने कानून की कुछ धाराओं रूपी अस्त्र - शस्त्रों का प्रयोग करती इससे पहले ही श्रीमती जी बोलीं ।

लॉकडाउन में काम करते करते थक गए हैं अब तो । एक आप ही हैं जो पलंग तोड़ते रहते हो । आज से आप भी घर का काम करेंगे । हम लोग तीन सदस्य हैं । एक तिहाई काम प्रत्येक के हिस्से में आयेगा । मैं काम के तीन ग्रुप बना देती हूं । जिसको जो पसंद है वो ले लो ।
1. नाश्ता , लंच , डिनर और चाय 
2. कपड़े और बर्तन 
3. झाड़ू पोंछा 

बेटी ने पहला ग्रुप चुना । श्रीमती जी ने दूसरा । अब मेरे पास तो कोई विकल्प ही नहीं बचा था । अब मैं क्या करता ? मैं किससे फरियाद करता ?  सुप्रीम कोर्ट के आदेश की तो कहीं  अपील भी नहीं होती है । 

कहते हैं कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है । शायद यह कहावत "पति" नाम के प्राणी को ध्यान में रखकर बनाई होगी । मैं चुपचाप  झाड़ू पोंछा लेकर "मिशन सफाई" पर निकल पड़ा ।


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7 Comments

Gunjan Kamal

23-Sep-2022 08:46 AM

शानदार

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दशला माथुर

20-Sep-2022 12:55 PM

Very nice 👍

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shweta soni

20-Sep-2022 12:25 AM

Sahi kaha apne 👌

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